अम्बाह – भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व में आजादी आंदोलन और संघर्षों के इतिहास में बिरसा मुंडा का नाम एक राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी के रूप में बड़े सम्मान से लिया जाता है। औपनिवेशिक भारत में सामाज और अर्थ व्यवस्थाओं से जुड़ी पृष्ठभूमि में उनका संघर्ष केवल अंग्रेजी हुक़ूमत या जल, ज़मीन, जंगल के लिए ही नहीं, बल्कि समकालीन क्रूर सामंती व्यवस्था के खिलाफ भी था।
यह उद्बोधन अम्बाह पीजी कॉलेज के हिंदी विभाग में आयोजित विरसा मुंडा जयंती पर आयोजित संगोष्ठी कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. शिवराज सिंह तोमर ने विद्यार्थियों को दिया। भगवान विरसा मुंडा के चित्र पर मालार्पण व दीप प्रजवल्लित किया गया।
इस अवसर पर इतिहास के प्राध्यापक एवं विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित डॉ. कौशलेंद्र उपाध्याय ने क्रांति के अग्रदूत भगवान बिरसा मुंडा के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए विद्रोह तथा उनके साहस और बलिदान की गाथा को छात्र-छात्राओं के समक्ष रखा ।
कार्यक्रम को संचालित कर रहीं राजनीतिक शास्त्र की प्रोफेसर डॉ. मंजू तोमर ने तत्कालीन शासकों की राजनैतिक स्थिति को बताते हुए कहा कि 1882 में अंग्रेज़ों ने ‘इंडियन फॉरेस्ट एक्ट’ लागू किया और आदिवासियों को ज़मीन के लिए जंगल से बेदखल करना शुरू किया। इसके प्रतिरोध के लिए 1898 में बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को संगठित आंदोलन के लिए प्रेरित करने के लिए डोम्बार पहाड़ियों पर मुंडाओं की विशाल जनसभा की, जिसमें आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की गई।
इस अवसर पर हिंदी विभाग की प्राध्यापक डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल छात्रा पूजा गुप्ता, पियूष शर्मा व मयंक कटारे ने भी विरसा मुंडा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।